Up board class 10 science notes 

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Q. अपरा (प्लेसेन्टा) क्या है ? इसका क्या कार्य है ?

उत्तर-रोपण के बाद भ्रूण और गर्भाशय के बीच एक विशेष ऊतक विकसित होता है, जिसे अपरा कहते हैं। अपरा के कार्य- अपरा द्वारा भ्रुण को विकसित होने के लिए भोजन, श्वसन, उत्सर्जन इत्यादि आवश्यकताओं की पूर्ति मातृ शरीर से होती है।

Q. शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है ?

उत्तर-शुक्राशय की भूमिका- शुक्राशय में शुक्राशय-द्रव का स्राव होता है। यह शुक्राणुओं को पोषण प्रदान करता है एवं उनकी गति के लिए माध्यम की तरह कार्य करता है। प्रोस्ट्रेट की भूमिका- यह पुरःस्थ द्रव का स्राव करती है। यह एक क्षारीय द्रव होता है। शुक्रद्रव एवं पुरःस्थ द्रव दोनों मिलते हैं और इन्हीं द्रवों के साथ शुक्राणु बाहर आते हैं।

Q. यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन-कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं ?

उत्तर-यौवनारंभ के समय लड़कियों में निम्नांकित परिवर्तन दिखाई देते हैं-

(i) चेहरे पर मुँहासे निकलने लगते हैं।
(ii) त्वचा अक्सर तैलीय हो जाती है।
(iii) पैर, हाथ एवं चेहरे पर महीन रोम आ जाते हैं।
(iv) ध्वनि सुरीली हो जाती है।
(v) ऋतुस्राव (रजोस्राव) प्रारंभ हो जाता है।



इन्हें भी देखें :- 

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Q. माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण का पोषण किस प्रकार होता है ?

उत्तर-गर्भस्थ भ्रूण को माँ के रक्त से पोषण प्राप्त होता है। भ्रूण नालरज्जु या प्लेसेन्टा के द्वारा माँ के गर्भ से जुड़ा रहता है। प्लेसेंटा का एक सिरा माँ के गर्भाशय में धंसा रहता है जिधर रक्त स्थान होते हैं जो प्लेसेन्टा के प्रवर्धा को आच्छादित रखते हैं। प्लेसेन्टा के प्रवर्ध रसांकुरों के रूप में व्यापक क्षेत्र प्रदान करते हैं। माँ के रक्त में उपस्थित ग्लूकोज, ऑक्सीजन तथा अन्य पोषण पदार्थ अवशोषित होकर प्लेसेन्टा से होते हुए रक्त के साथ भ्रूण में पहुँचते हैं।

Q. यदि कोई महिला कॉपर-1 का प्रयोग कर रही है तो क्या वह उसकी यौन संचरित रोगों से रक्षा करेगा?

उत्तर-महिलाओं की योनि में कॉपर- एक ऐसा प्रयोज्य साधन है पुरुष के शुक्राणुओं का प्रवेश डिम्ब नलिका में नहीं होने देता है। यह कॉपर- किसी यौन रोगाणु को भी गर्भाशय में प्रवेश नहीं होने देता। अतः यह महिला की यौन संचरणीय रोगों से भी रक्षा करता है।

Q. मानव में वृषण के क्या कार्य हैं ?

उत्तर-नर में प्राथमिक जनन अंग अंडाकार आकृति का वृषण होता हैं नर जनन हॉर्मोन एक जोड़ी वृषण उदर गुहा के बाहर छोटे अंडानुमा मांसल संरचना में रहते हैं जिसे वृषण कोष कहते कोष कहते हैं। वृषण में शुक्राणु तथा टेस्टोस्टेरान की उत्पत्ति होती है। वृषण कोष शुक्राणु बनने के लिए उचित ताप प्रदान करता है।


Q. ऋतुसाव क्यों होता है ?

उत्तर-यदि अंडाणु का निषेचन नहीं होता है तो वह एक दिन बाद नष्ट हो जाता है। गर्भाशय भी निषेचित अंडाणु को प्राप्त करने की तैयारी करता है। गर्भाशय की दीवार मोटी तथा स्पंजी हो जाती है। लेकिन निषेचन न होने पर ये धीरे-धीरे टूटती है और रुधिर व म्यूकस के रूप में योनि मार्ग से बाहर निकलती है। इस प्रक्रिया को रजोधर्म या ऋतुसाव कहते हैं। अतः ऋतुस्राव निषेचन न होने की अवस्था में होता है।

Q. गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन-कौन सी हैं ?

उत्तर- गर्भनिरोधन की लिए बहुत-सी विधियों का विकास किया गया है जो निम्न है-

(i) अवरोधिका विधियाँ- इन विधियों में कंडोम, मध्यपट और गर्भाशय ग्रीवा आच्छद का उपयोग किया जाता है। ये मैथुन के दौरान मादा जननांग में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोकती हैं।

(ii) रासायनिक विधियाँ- इस प्रकार की विधि में स्त्री दो प्रकार- मुखीय गोलियाँ तथा योनि गोलियाँ प्रयोग करती है। ये गोलियाँ मुख्यतः हार्मोन्स से बनी होती हैं जो अंडाणु को डिम्बवाहिनी नलिका में उत्सर्जन से रोकती हैं।

(ii) शल्य विधियाँ- इस विधि में पुरुष शुक्रवाहक तथा स्त्री की डिम्बवाहिनी नली के छोटे से भाग को शल्यक्रिया द्वारा काट या बाँध दिया जाता है। इसे नर नसबंदी तथा स्त्री में स्त्री नसबंदी कहते हैं।

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Q. गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं ?

उत्तर-जनन एक ऐसा प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव अपनी समष्टि की वृद्धि करते हैं। एक समष्टि में जन्मदर एवं मृत्युदर उसके आकार का निर्धारण करते हैं। जनसंख्या का विशाल आकार बहुत लोगों के लिए चिंता का विषय है। इसका मुख्य कारण यह है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार लाना आसान कार्य नहीं है। अतः जनसंख्या की बढ़ती हुई संख्या पर नियंत्रण रखना जरूरी है। इसीलिए गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनानी चाहिए।

Q. जनन किसी स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है?

उत्तर-जनन द्वारा जीव अपनी प्रतिकृति अथवा नई संतति को जन्म देती है। यद्यपि नई संतति जनक की पूर्ण प्रतिकृति नहीं होती हैं, फिर भी उनमें मौलिक समानताएँ होती हैं। इस प्रकार जनन के द्वारा जीव अपनी संतति के निर्माण की प्रक्रिया को बनाए रखता है। यदि जीवों में जनन की प्रक्रिया नहीं होती तो वे अपने समान जीवों की उत्पत्ति नहीं कर पाते तथा एक समय के बाद उनका अस्तित्व ही मिट जाता। किसी स्पीशीज में पाई जाने वाले जीवों की विशाल संख्या जनन का ही परिणाम है। जनन से विभिन्नताएँ भी उत्पन्न होती हैं। ये विभिन्नताएँ विपरीत परिस्थितियों में भी जीवधारियों को जीवित रहने में सहायता करती है। इस प्रकार उन जीवों की स्पीशीज समाप्त नहीं होती है। इस प्रकार, जनन किसी स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में महत्त्वपूर्ण रूप से सहायक है।

Q. एक-कोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में क्या अंतर है ?

उत्तर-एक कोशिक जीवों में प्रायः अलैंगिक जनन ही होता है तथा एक अकेला जीव संतति उत्पन्न कर सकता है। बहुकोशिक जीवों में लैंगिक जनन भी होता है जिसके लिए नर और मादा दोनों जीवों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के जनन में डी० एन०ए० की प्रतिकृति का निर्माण होता है तथा इससे विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं जो विकास में सहायक हैं। एक कोशिक जीवों की जनन पद्धति से विभिन्नताओं के उत्पन्न होने की संभावना कम होती है।


इन्हें भी देखें :- 

(i) chapter 1 mcq
(ii) chapter 2