Ncert class 12 political science chapter 2 solution and notes

दोस्तों आज के इस पोस्ट में  मैं आप सभी के लिए Ncert class 12 political science chapter 2 solution and notes लेकर के आया हूँ इससे पहले वाले पोस्ट में मैंने Ncert class 12 political science chapter 2 solution and notes के पहले chapter का notes दे दिया हूँ | chapter 1 click here तो chapter 2 का notes देखने के लिए निचे ध्यान से पढ़े |

class 12 political science chapter 2 solution
 

Q. द्वि-ध्रुवीयता से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें दो प्रतिपक्षी या विरोधी राज्य होते हैं और दोनों राज्य एक दूसरे के शत्रु होते है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संसार में दो देश संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ महाशक्तियों के रूप में उभरी। संसार के अन्य देश इन्हीं दो गुटों या महाशक्तियों में बँट गया। दोनों महाशक्तियाँ एक दूसरे को कमजोर करने में प्रयत्नशील थीं। अंतराष्ट्रीय व्यवस्था का दो विरोधी समूहों में बँटना ही द्वि-ध्रुवीयता कहलाता हैं।

Q. 'शॉक थेरेपी क्या है?

उत्तर- साम्यवाद के पतन के बाद रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों ने पूँजीवाद की ओर संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को 'शॉक थेरेपी' कहा गया।

Q. पहली दुनिया क्या है ? इसके कुछ देशों के नाम लिखें।

उत्तर-पूँजीवादी देशों को पहली दुनिया कहा गया। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, पुर्तगाल आदि देशों को पहली दुनिया के देश कहते हैं

Q. दूसरी दुनिया से क्या समझते हैं ?

उत्तर-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संसार दो गुटों में विभाजित हो गया- अमेरिकी गुट एवं सोवियत संघ गुट । अमेरिकी गुट में सम्मिलित देशों को मिलाकर पहली दुनिया बनी। सोवियत गुट में सम्मिलित देशों को दूसरी दुनिया के नाम से पुकारा गया। दूसरी दुनिया के देशों को सोवियत संघ ने फासीवादी देशों के चंगुल से मुक्त कराया और ऐसे देशों में साम्यवाद का प्रसार हुआ। दूसरी दुनिया के देशों में पूँजीवाद व्यवस्था की जगह समाजवादी व्यवस्था को गले लगाया। पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश, जैसे युगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, लातविया आदि सोवियत संघ के नेतृत्व में आ गए।

Q. सोवियत प्रणाली क्या थी ? इसकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख करें।

उत्तर- समाजवादी सोवियत गणराज्य (यू०एस०एस०आर०) रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद अस्तित्व में आया। यह क्रांति पूँजीवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी और समाजवाद के आदर्शों और समतामूलक समाज की जरूरत से प्रेरित थी। यह क्रांति वस्तुतः पूँजीवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी। विशेषताएँ- यह मानव इतिहास में निजी संपत्ति की संस्था को समाप्त करने और समाज को समानता के सिद्धांत पर लड़ने की सबसे बड़ी कोशिश थी। ऐसा करने में सोवियत प्रणाली के निर्माताओं ने राज्य और 'पार्टी की संस्था को प्राथमिक महत्त्व दिया। सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी। इसमें किसी अन्य राजनीतिक दल या विपक्ष के लिए जगह नहीं थी। अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियंत्रण में थी।

Q. मिखाइल गोर्बाचेव कौन थे ? उनके द्वारा किये गये सुधारों एवं अच्छे कार्यों का उल्लेख करें।

उत्तर-मिखाइल गोर्बाचेव- उनका जन्म 1931 में हुआ था। वह सोवियत संघ के अन्तिम राष्ट्रपति (1985 से 1991 ई० तक) थे। उनका नाम रूसी इतिहास में सुधारों के लिए जाना जाता है। उन्होंने पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) और ग्लासनोस्त (खुलेपन) के आर्थिक और राजनीतिक सुधार शुरू किए। गोर्बाचेव ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हथियारों की होड़ पर रोक लगाई। अफगानिस्तान और पूर्वी यूरोप से सोवियत सेना वापस बुला लिया गया यह अंतर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने की दृष्टि से उनका एक बहुत ही अच्छा कार्य था। वह जर्मनी के एकीकरण में सहायक बने । उन्होंने शीतयुद्ध समाप्त किया। उन पर सोवियत संघ के विघटन का आरोप लगाया जाता है, लेकिन उन्होंने वस्तुतः सोवियत संघ के लोगों को राजनीतिक घुटन से मुक्ति दिलायी।

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Q. मिखाईल गोर्बाचेव को सोवियत संघ के विघटन का उत्तरदायी क्यों माना गया ?

उत्तर-सोवियत संघ के विघटन के लिए मिखाईल गोर्बाचेव द्वारा देश में चलायी गयी सुधारवादी नीति रहीं। वे सोवियत संघ मे इन नीतियों द्वारा आर्थिक एवं राजनीतिक सुधार लाना चाहते थे। वे सोवियत संघ की अर्थव्यवथा को पश्चिम की बराबरी पर लाना चाहते थे। प्रशासनिक ढाँचे में लचीलापन लाने हेतु पेरेस्त्रोइका एवं ग्लासनोस्त जैसी नीति अपनायी गयी। इन नीतियों बावजूद देश की जनता इस प्रकार की व्यवस्था को नहीं अपना सके और गोर्बाचेव को सोवियत संघ के विघटन का जिम्मेदार माना गया।

Q. बोरिस येल्तसिन का संक्षिप्त परिचय एवं महत्त्वपूर्ण कार्यों का भी उल्लेख करें। 

उत्तर-बोरिस येल्तसिन- उनका जन्म 1931 में हुआ था। वह रूस के प्रथम चुने हुए राष्ट्रपति बने। इस पद पर उन्होंने 1991 से 1999 तक कार्य किया। वह कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता केन्द्र तक पहुँचे। राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा उन्हें मास्को का मेयर बनाया गया था। कालान्तर में वह गोर्बाचेव के आलोचकों में शामिल गये थे और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से त्यागपत्र दे दिया था। उन्होंने 1991 में सोवियत संघ के शासन के विरुद्ध उठे विरोधी आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने सोवियत संघ के विघटन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। उन्हें साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण के दौरान रूसी लोगों को हुए कष्ट के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।

Q.  शीत-युद्ध के दौरान भारत और रूस के संबंध पर प्रकाश डालें।

उत्तर-शीत-युद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुत गहरे थे। इससे आलोचकों को यह कहने का अवसर भी मिला कि भारत सोवियत खेमे का हिस्सा था। इस दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुआयामी थे। आर्थिक- सोवियत संघ ने भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को ऐसे वक्त में मदद की जब ऐसी मदद पाना मुश्किल था। सोवियत संघ ने भिलाई. बोकारो और विशाखापट्टनम के इस्पात कारखानों तथा भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स जैसे मशीनरी संयत्रों के लिए आर्थिक और तकनीकी सहायता दी। भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी थी तब सोवियत संघ ने रुपये को माध्यम बनाकर भारत के साथ व्यापार किया। राजनीतिक- सोवियत संघ ने कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत के रूख को समर्थन दिया। सोवियत संघ ने भारत के संघर्ष के गाढ़े दिनों खासकर सन् 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान मदद की। भारत ने भी सोवियत संघ की विदेश नीति का अप्रत्यक्ष, लेकिन महत्त्वपूर्ण तरीके से समर्थन किया। सैन्य- भारत को सोवियत संघ ने ऐसे वक्त में सैनिक साजो-सामान दिए जब शायद ही कोई अन्य देश अपनी सैन्य टेक्नोलॉजी भारत को देने के लिए तैयार था। सोवियत संघ ने भारत के साथ कई ऐसे समझौते किए जिससे भारत संयुक्त रूप से सैन्य उपकरण तैयार कर सका। संस्कृति-हिन्दी फिल्म और भारतीय संस्कृति सोवियत संघ में लोकप्रिय थे। बड़ी संख्या में भारतीय लेखक और कलाकारों ने सोवियत संघ की यात्रा की।

Q. सोवियत संघ के विघटन के किन्हीं छ: परिणामों का आकलन करें।

उत्तर- सोवियत संघ के विघटन के परिणाम निम्नांकित हैं-

(i) शीत युद्ध का दौर समाप्त- सोवियत संघ के विघटन होने से शीत युद्ध का दौर समाप्त हो गया।

(ii) एक ध्रुवीय विश्व का उदय- अब हथियारों की होड़ भी समाप्त हो गई। विश्व में अमेरिका का वर्चस्व स्थापित हो गया और सैन्य बल के आधार पर कोई भी देश अमेरिका को चुनौती नहीं दे सकता।

(ii) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था- विश्व में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली अर्थव्यवस्था बन गई। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएँ देशों की सलाहकार बन गई।

(iv) उदारवादी लोकतंत्र का उभार- राजनीतिक रूप में उदारवादी लोकतंत्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने की सर्वश्रेष्ठ भावना के रूप में उभरा है। सोवियत संघ की केन्द्रीयकृत सत्ता का अंत हो चुका था।

(v) नए देशों का उदय- सोवियत संघ के विघटन के कारण नए देशों का उदय हुआ जिनकी अपनी पहचान और पसंद थी। इनमें से बाल्टिक और पूर्वी यूरोप के देश यूरोपीय संघ और नाटो से संबंध रखना चाहते थे, अतः इन्होंने पश्चिमी देशों, अमेरिका, चीन के साथ अन्य देशों से भी संबंध बनाए।

(vi) साम्यवादी देशों में मुक्त व्यापार- सोवियत संघ के पश्चात् रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों ने पूँजीवाद को अपनाया। इसके अंतर्गत शॉक थेरेपी के मॉडल को अपनाया गया। इसके परिणामस्वरूप इन देशों ने मुक्त व्यापार वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता को अपनाया।

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Q. समाजवादी (सोवियत) अर्थव्यवस्था एवं पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रमुख अंतर क्या है?

उत्तर-(1) समाजवादी अर्थव्यवस्था ने पूँजीवादी देशों के विपरीत राज्य और पार्टी की संस्था को प्राथमिक महत्व दिया। उत्पादन के साधनों पर पूर्णतया राज्य का नियंत्रण था।

(ii) पूँजीवादी देशों के विपरीत सोवियत संघ में अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियंत्रण में थी। सोवियत संघ की सरकार द्वारा सभी नागरिकों के लिए एक न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चत कर दिया गया था। सरकार बुनियादी आवश्यकताओं की वस्तुओं जैसे- स्वास्थ्य सुविधा, रियायती दरों पर शिक्षा उपलब्ध कराती थी। बेरोजगारी नहीं थी। भूमि और अन्य उत्पादक संपदाओं पर स्वामित्व व नियंत्रण राज्य का था।

(iii) सोवियत अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी देश की अर्थव्यवस्था के विपरीत निजी सम्पत्ति की संस्था को समाप्त कर दिया गया था। मिल्कियत का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व था।

(iv) इसके विपरीत पूँजीवादी देशों में निजी स्वामित्व होता है और कारखानों के स्वामी अपनी इच्छानुसार अपने लाभ-हानि का अनुमान लगाकर उत्पादन करते

Q. एक ध्रुवीयता, द्विधुवीयता व बहुधुवीयता का अर्थ स्पष्ट करें।

उत्तर- एक ध्रुवीयता-1991 ई० में शीतयुद्ध का अंत हो गया। शीतयुद्ध के अंत के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा और दुनिया में कोई उसकी टक्कर का प्रतिद्वन्द्वी न रहा। इस घटना के बाद के दौर को अमेरिकी प्रभुत्व या एक-ध्रुवीयता कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, जब अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के किसी एक महाशक्ति के दबदबे में अधिकांश राष्ट्र हो तो प्रायः उसे एक-ध्रुवीयता व्यवस्था कहते हैं।

द्विध्रुवीयता- शीतयुद्ध के समय में दो अलग-अलग गुटों में विश्व विभक्त था। एक राष्ट्र का नेतृत्व सोवियत संघ रूस तो दूसरे का संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था। इसे ही द्विध्रुवीयता कहा जाता है।

बहुधुवीयता- बहुधुवीयता वैसी व्यवस्था को कहते हैं जिसमें विश्व अलग अलग कई गुटों में बँट जाता है। अमेरिका के सख्त रवैये और मनमाने ढंग से परेशान होकर आज विश्व कई गुटों में बँट गया है। इसे ही बहुधुवीयता कहा जाता है।

Q. सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का जिक्र करें।

उत्तर-(i) सोवियत अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी देश जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत पश्चिमी जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन आदि देशों की अर्थव्यवस्था निजी सम्पति की संस्था को समाप्त कर दिया गया था। मिल्कियत का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व था।

(ii) समाजवादी अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के विपरीत राज्य या समाज और पार्टी की संस्था को प्राथमिक महत्त्व दिया। उत्पादन के साधनों (भूमि, पूँजी आदि) पर पूर्णतया राज्य का नियंत्रण था।

(iii) पूँजीवादी देशों के विपरीत सोवियत संघ में अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियंत्रण में थी। निजी क्षेत्र-व्यक्तियों, निजी कम्पनियों तथा उद्यमियों को उत्पादन, वितरण आदि से दूर रखा जाता था। भूमि और उत्पादन सम्पदाओं पर स्वामित्व होने के अलावा नियंत्रण भी राज्य का ही था। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे पूँजीवादी देशों में भूमि और अन्य उत्पादक सम्पदाओं, कारखाने, मिलों, कम्पनियों आदि पर स्वामित्व व्यक्तियों या व्यक्ति-समूहों (कम्पनियों या पूँजीपतियों अथवा उद्योगपतियों) का होता है।

Q. किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए ?

उत्तर-निम्न कारणों की वजह से मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए-

(i) गोर्बाचेव ने सैन्य व्यय को कम करके राष्ट्रीय संसाधनों को विकास कार्यों में लगाने के लिए यह आवश्यक समझा कि पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को सामान्य बनाया जाये तथा जनता को नागरिक अधिकार देने तथा दम घुटने की राजनीतिक फिजा से छुटकारा देने के लिए सोवियत संघ को लोकतांत्रिक रूप दिया जाये, क्योंकि पूर्वी यूरोपीय देशों की, (जो सोवियत संघ के खेमे के हिस्से थे) जनता ने अपनी सरकारों की (सोवियत संघ समर्थ नीतियों) नीतियों और सोवियत संघ के नियंत्रण का विरोध करना शुरू कर दिया था। गोर्बाचेव के शासक रहते सोवियत संघ ने ऐसी गड़बड़ियों में उस तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जैसा अतीत में होता था। (पूर्वी यूरोप की साम्यवादी सरकारें एक के बाद एक गिरती चली गई)।

(ii) 1980 के दशक के मध्य में जब वह सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) बने तब देखा गया कि पश्चिम के देशों में (जिन देशों से सोवियत संघ प्रतियोगिता करने का दावा करता था।) सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांति हो रही थी और सोवियत संघ को उनकी बराबरी में लाने के लिए सुधार जरूरी हो गए थे। गोर्बाचेव ने देश के अन्दर आर्थिक राजनीतिक सुधारों और लोकतंत्रीकरण की नीति चलायी। सोवियत संघ की जनता तथा स्वयं गोर्बाचेव ने भी महसूस किया कि अनेक वर्षों से उनके देश की अर्थव्यवस्था की गति अवरुद्ध हो रही थी इससे देश में उपभोक्ता-वस्तुओं की बड़ी कमी महसूस हो रही थी। सोवियत संघ की आबादी का एक बड़ा भाग अपनी राज्य व्यवस्था को संदेह की दृष्टि से देखने लगा था।

(iii) सोवियत संघ पर पश्चिमी देशों के उदारवादी लोकतंत्रीय/गणतंत्रीय एवं संघीय शासन प्रणालियों का व्यापक प्रभाव पड़ चुका था। 1991 में जब कट्टरपंथियों (साम्यवादियों) ने गोर्बाचेव पर तानाशाही के तरीके अपनाने के लिए दबाव डाला तो उसने स्पष्ट कर दिया कि अब देश की जनता स्वतंत्रता का स्वाद चख चुकी है। वह भी कम्युनिस्ट पार्टी के पुरानी रंगत वाले शासन में नहीं जाना चाहते थे। यद्यपि गोर्बाचेव ने अपना वायदा पूरा किया फिर भी उनके आलोचकों ने उन्हें नहीं छोड़ा और यह दोष उन पर लगाया कि उन्हें और तेज गति से कदम उठाने चाहिए। उधर विशेषाधिकार प्राप्त समाजवादी गोर्बाचेव पर दोष लगा रहे थे कि वे बहुत जल्दबाजी कर रहे हैं इसलिए सोवियत व्यवस्था से उन्हें जो फायदे मिले हुए थे वे उनसे छीने जा रहे हैं। इस खींचतान में गोर्बाचेव का समर्थन हर तरफ से जाता रहा।

 

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Q. भारत-रूस संबंध की विवेचना करें।

उत्तर- 1991 ई० के विघटन के फलस्वरूप पृथक हुए 15 गणराज्यों में रूस सर्वाधिक शक्तिशाली और साधन-सम्पन्न था। अतः सुरक्षा परिषद में उसे सोवियत संघ के उत्तराधिकारी राज्य के रूप में मान्य किया गया तथा उसे सोवियत संघ का स्थान दिया गया। भारत ने भी रूस के साथ अपने संबंध यही रखे, जो सोवियत संघ के साथ थे। 1988 ई० में रूस ने भारत की गुटनिरपेक्ष नीति का समर्थन और स्वागत किया। रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने 1993 ई० में भारत की यात्रा की तथा महत्त्वपूर्ण संधियों पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों में एक-दूसरे के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं करने की सहमति भी हुई। 1994 ई० में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी० वी० नरसिंहाराव की रूस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 11 संधियाँ हुई। 1998 ई० में भारत द्वारा किए भूमिगत परमाणु परीक्षण की जहाँ विश्व के अन्य देशों ने निंदा की, वहीं रूस ने इसकी प्रशंसा की तथा इसी समय भारत और रूस में विभिन्न विषयों पर 7 संधियाँ हुई। रूस ने भारत के सुरक्षा परिषद् की सदस्यता के दावे का समर्थन किया। 1999 ई० में कारगिल युद्ध के समय रूस ने पुनः भारत का पक्ष लिया। इस समय भारत और रूस में हवाई युद्ध की सामग्रियों के संबंध में महत्त्वपूर्ण संधि हुई। 2000 ई० में रूसी राष्ट्रपति ब्लादमीर पुतीन की भारत यात्रा के दौरान एक संयुक्त घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए गए, जिसका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद को रोकना था। आतंकवाद से निपटने के लिए एक संयुक्त कार्य दल के गठन का निर्णय भी लिया गया। फरवरी 2002 ई० में भारतीय रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडिस तथा रूसी उपप्रधानमंत्री इल्या क्लेबानोव के बीच एक व्यापक सैन्य-संधि हुई। इस प्रकार समय के प्रत्येक सोपान पर भारत-रूसी संबंध घनिष्ठता की ओर बढ़ता गया।

Q. भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?

उत्तर- भारत के लिए सोवियत संघ के विघटन के परिणाम-

(1) भारत शीतयुद्ध को रोकने की चाह करने वाले राष्ट्रों में अग्रणी राष्ट्र था। उसे महसूस हुआ कि अब विश्व में शीतयुद्ध का दौर और अंतर्राष्ट्रीय तनावपूर्ण वातावरण एवं संघर्ष की समाप्ति हो जायेगी। भारत ने महसूस किया कि अब सैन्य गुटों के गठन की प्रक्रिया रुकेगी तथा हथियारों की तेज दौड़ भी थमेगी। भारत में सरकार तथा जनता को एक नई अंतर्राष्ट्रीय शांति सम्भावना दिखाई देने लगी।

(ii) भारत अन्य प्रजातंत्रीय देशों की तरह विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका की तरफ और मजबूती से दोस्ती करने के लिए बढ़ता चला गया। मिश्रित अर्थव्यवस्था को सन् 1991 से ही धीरे-धीरे छोड़ दिया गया। नई आर्थिक नीति की घोषणा कर दी गई। भारत में भी लोग पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्वशाली अर्थव्यवस्था मानने लगे। भारत में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की  नीतियाँ अपनाई जाने लगीं। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी विभिन्न संस्थाएँ देश की प्रबल परामर्शदात्री मानी जाने लगीं।

(iii) सोवियत संघ के विघटन के बाद से भारत में राजनीतिक रूप से उदारवादी लोकतंत्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने वाला अधिक प्रबल रूप में बुद्धिजीवियों तथा अधिकांश पार्टियों द्वारा समझा जाने लगा है। अनेक वामपंथी विचारकों को एक झटका सा लगा है। वे मानते हैं कि शीघ्र ही पुनः विश्व में साम्यवाद का बोलबाला होगा।

(iv) भारत ने मध्य एशियाई देशों के प्रति अपनी विदेश नीति को नये सिरे से तय करना शुरू कर दिया है। सोवियत संघ से अलग हुए सभी पन्द्रह गणराज्यों से भारत के संबंध नये रूप से निर्धारित किये जा रहे हैं। भारत चीन, रूस के साथ-साथ पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भी मुक्त व्यापार को अपनाना जरूरी मान रहा है। भारत रूस, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्वेकिस्तान और अजर बेजान से तेल और गैस अन्य (जो इन चीजों के बड़े उतपादक हैं) देशों व क्षेत्रों से पाइप-लाइन गुजार करके लाने तथा अपनी जरूरतें पूरी करने के प्रयास में जुटा हुआ है। भारत रूस के साथ-साथ इन देशों में अपनी संस्कृति (हिन्दी फिल्में एवं गीत) के प्रचार के लिए कई तरह के समझौते कर चुका है।

 

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इन्हें भी देखे :- 
i) chapter 1 notes 
ii)
iii)