Ncert class 12 political science chapter 1 solution and notes in hindi
Ncert class 12 political science chapter 1 solution in hindi
आज के इस पोस्ट में आप सभी को Ncert class 12 political science chapter 1 solution in hindi लाया हूँ अगर आप बारहवी कक्षा में हैं और आप Ncert class 12 political science chapter 1 notes in hindi चाहते हैं तो इस पोस्ट में आपको दिया जा रहा है Ncert class 12 political science chapter 1 solution in hindi तो निचे सभी प्रश्न को ध्यान से देखे :-
Q. शीत युद्ध क्या है?
उत्तर- शीत युद्ध विचारधाराओं का संघर्ष था। शीत युद्ध के दौरान साम्यवादी विचारधारा जिसका नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था। पूँजीवादी विचारधारा जिसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा था, के बीच वैचारिक संघर्ष था। यही कारण था कि 1990 ई० के शुरुआती वर्ष में सोवियत संघ के पतन के साथ ही शीत युद्ध समाप्त हो गया।
Q गुटनिरपेक्षता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-गुटनिरपेक्षता की नीति का अर्थ है किसी देश अथवा राष्ट्र का अन्य बहुत से देशों द्वारा बनाए गए सैनिक गुटों में सम्मिलित न होना तथा किसी भी गुट या राष्ट्र के कार्य की सहराना या निन्दा आँख बन्द करके बिना सोचे समझे न करना। जब कोई राष्ट्र अथवा देश किसी गुट में सम्मिलित हो जाता है तो उस गुट की प्रत्येक कार्यवाही को उचित ही बताना पड़ता है चाहे वह वास्तव में उचित हो न हो। वास्तविकता यह है कि गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने वाला राष्ट्र अपने लिए एक स्वतंत्र विदेश नीति का निर्धारण करता है। वह राष्ट्र अच्छाई या बुराई, उचित व अनुचित का निर्णय स्वविवेक से करता है न कि किसी गुट अथवा बड़े राष्ट्र के दबाव में आकर करता है।
Q गुटनिरपेक्षता का मतलब पृथक्तावाद नहीं है। समझाएँ।
उत्तर-गुटनिरपेक्षता का मतलब पृथकतावाद नहीं। पृथकतावाद का अर्थ होता है अपने को अंतर्राष्ट्रीय मामलों से काटकर रखना। 1787 में अमेरिका में स्वतंत्रता की लड़ाई हुई थी। इसके बाद से पहले विश्वयुद्ध की शुरुआत तक अमेरिका ने अपने को अंतर्राष्ट्रीय मामलों से अलग रखा। उसने पृथकतावाद की विदेश नीति अपनाई थी। इसके विपरीत गुटनिरपेक्ष देशों ने, जिसमें भारत भी शामिल है. शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच मध्यस्थता में सक्रिय भूमिका निभाई। गुटनिरपेक्ष देशों की ताकत की जड़ उनकी आपसी एकता और महाशक्तियों द्वारा अपने-अपने खेमे में शामिल करने की पुरजोर कोशिशों के बावजूद ऐसे किसी खेमे में शामिल न होने के उनके संकल्प में है।
Q गुटनिरपेक्ष से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- गुटनिरपेक्ष का अर्थ है- सैन्य गुटों से पृथक रहना। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व दो महाशक्तियों के बीच बँट गया। नव-स्वतंत्र देशों ने यह निर्णय लिया कि वे किसी भी गुट में शामिल नहीं होंगे। इसे एक आंदोलन का रूप दिया गया
Q गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रमुख नेतागण कौन-कौन थे?
उत्तर-पंडित जवाहरलाल नेहरू, युगोस्लाविया के जासेफ ब्रॉज टीटो, मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर, इंडोनेशिया के सुकर्णो और घाना के वामे एनक्रूमा ।
Q गुटनिरपेक्ष आंदोलन के किन्हीं दो उद्देश्यों का उल्लेख करें।
उत्तर- गुटनिरपेक्ष आंदोलन विशेष परिस्थितियों में प्रारंभ हुआ था। आरंभ में गुट निरपेक्षता भारत की विदेश नीति का महत्वपूर्ण सार थी परन्तु बाद में संसार को बड़े गुटों (अमेरिकी एवं सोवियत संघ गुट) में बँट जाने से इस गुटनिरपेक्षता ने एक आंदोलन का रूप धारण कर लिया तब कुछ और देशों ने भी गुटनिरपेक्षता को सैनिक गुटों में बँटे संसार के लिए शांति दूत मान लिया। युद्ध के निकट आने वाले संसार को गुटनिरपेक्षता की आवश्यकता थी। सैनिक हथियारों की होड़ न करने वाले देशों को गुटनिरपेक्षता की आवश्यकता थी। भारत ने यह विदेश नीति व आंदोलन दोनों संसार को दिये थे।
ncert class 12 political science chapter 1 notes in hindi
ncert class 12 political science chapter 1 notes, ncert class 12 political science notes in hindi,Q. गुटनिरपेक्षता का अर्थ तटस्थता का धर्म निभाना नहीं है। संक्षेप में स्पष्ट करें।
उत्तर-गुटनिरपेक्षता का अर्थ तटस्थता का धर्म निभाना भी नहीं है। तटस्थता का अर्थ होता है मुख्यतः युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना। तटस्थता की नीति का पालन करने वाले देश के लिए जरूरी नहीं कि वह युद्ध को समाप्त करने में मदद करे। ऐसे देश युद्ध में संलग्न नहीं होते और न ही युद्ध के सही-गलत होने के बारे में उनका कोई पक्ष होता है। दरअसल कई कारणों से गुटनिरपेक्ष देश, जिसमें भारत भी शामिल है. युद्ध में शामिल हुए हैं। इन देशों में दूसरे देशों के बीच युद्ध को होने से टालने के लिए काम किया है और हो रहे युद्ध के अंत के लिए प्रयास किए हैं।
Q. नाटो (NATO) के बारे में बताएँ। इसकी स्थापना कब हुई ?
उत्तर-पश्चिमी गंठबंधन ने स्वयं को एक संगठन का रूप दिया। अप्रैल 1949 ई०, में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO-NorthAtlantic Treaty Organisation) की स्थापना हुई, जिसमें 12 देश शामिल थे। इस संगठन ने घोषणा की कि उत्तर अमेरिका अथवा यूरोपीय देशों में से किसी एक पर भी हमला होता है, तो उस संगठन में शामिल हर देश एक-दूसरे की मदद करेगा।
Q. सीमित परमाणु परीक्षण संधि (LTBT) क्या है ?
उत्तर- सीमित परमाणु परीक्षण संधि- वायुमण्डल, बाहरी अंतरिक्ष तथा पानी के अन्दर परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबन्ध लगाती है। इस संधि पर अमेरीका, ब्रिटेन तथा सोवियत संघ ने मास्को में 5 अगस्त, 1963 को हस्ताक्षर किए। यह संधि 10 अक्टूबर, 1963 से प्रभावी हो गई।
Q. भारत अमेरिकी संबंधों की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर-भारत और अमेरिका के संबंध पुराने हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व राष्ट्रीय आंदोलन के समय से ही अमेरिका भारत के प्रति सहानुभूति रखता था और उसने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को सहारा दिया था। इस हेतु द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में अमेरिका ने ब्रिटेन पर दबाव बनाया कि भारत को भी आत्म निर्णय का अधिकार मिलना चाहिए। भारत के लोगों के प्रति अमेरिका की सहानुभूति सोवियत प्रभाव को रोकने के उद्देश्य से भी थी।
Q. वारसा संधि क्या है ?
उत्तर-नाटो की तरह पूर्वी गठबंधन को वारसाय संधि (वारसा पैक्ट) के नाम से जाना जाता है। इसकी अगुआई सोवियत संघ ने की। इसकी स्थापना सन् 1955 ई० में हुई थी और इसका मुख्य काम था नाटो में शामिल देशों का मुकाबला करना।
Q. शीत युद्ध एवं तनाव शैथिल्य में अंतर बताएँ।
उत्तर-दूसरे महायुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ दो महाशक्तियाँ बन गए। इन दोनों के गुटों के बीच प्रतिद्वंद्विता, द्वेष व टकराव की स्थिति पैदा हुई जो किसी समय तीसरे विश्व युद्ध का मार्ग खोल सकती थी। इसी को शीतयुद्ध कहा गया। अर्थात्, शीत युद्ध उस स्थिति को कहा जाता है जहाँ देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता, तनाव और संघर्ष तो जारी रहता है, लेकिन यह संघर्ष और तनाव युद्ध का रूप नहीं लेता है। कई बार, दोनों महाशक्तियाँ मौकों पर सीधे-सीधे मुठभेड़ की स्थिति में आ जाती थीं। पर इस प्रकार के संघर्षों और कुछ गहन संकटों को टालने में अंतर्राष्ट्रीय दवाव और समय पर दोनों गुटों की आपसी समझ ने कारगर भूमिका निभाई। धीरे-धीरे स्थिति सुधरी, परस्पर सहयोग एवं समन्वय बढ़ा, शीत युद्ध की गरमी घटी। इस प्रकार के प्रयासों को तनाव शैथिल्य कहा जाता है। इसके कारण विश्व परमाणु युद्ध से बचा रहा और वैमनस्य विश्वव्यापी नहीं हो पाया। 1991 ई० में सोवियत संघ के विघटन के साथ शीत युद्ध एवं तनाव शैथिल्य की स्थितियों का अंत हो गया।
Q. गुटनिरपेक्षता तथा तटस्थता में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-गुटनिरपेक्षता तथा तटस्थता में अंतर-गुटनिरपेक्षता का अर्थ तटस्थता का धर्म निभाना भी नहीं है। तटस्थता का अर्थ होता है मुख्यतः युद्ध में शामिल न होने की नीति का पालन करना। तटस्थता की नीति का पालन करने वाले देश के लिए यह जरूरी नहीं कि वह युद्ध को समाप्त करने में मदद करे। ऐसे देश युद्ध में संलग्न नहीं होते और न ही युद्ध के सही-गलत होने के बारे उनका कोई पक्ष होता है। दरअसल कई कारणों से गुटनिरपेक्ष देश, जिसमें भारत भी शामिल है। युद्ध में शामिल हुए हैं। इन देशों ने दूसरे देशों के बीच युद्ध को होने से टालने के लिए काम किया है और हो रहे युद्ध के अंत के लिए प्रयास किए हैं।
ncert class 12 political science chapter 1 solution in hindi
ncert class 12 political science, ncert class 12 political science chapter 1,ncert class 12 poitical science chpter 1 in hindiQ. महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन क्यों रखती थीं? तीन कारण बताएँ।
उत्तर-प्रायः अनेक लोग यह प्रश्न उठाते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त महाशक्तियों ने छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन क्यों रखा था? उन्हें ऐसा करने की क्या आवश्यकता थी? आखिर अपने परमाणु हथियारों और अपनी स्थायी सेना के बूते महाशक्तियाँ इतनी ताकतवर थीं कि एशिया तथा अफ्रीका और यहाँ तक कि यूरोप के अधिकांश छोटे देशों की साझी शक्ति का भी उनसे कोई मुकाबला नहीं था। लेकिन, हमें यह समझने की जरूरत है कि छोटे देश निम्न कारणों से महाशक्तियों के बड़े काम के थे-
(i) भू-क्षेत्र ताकि महाशक्तियाँ प्राकृतिक संसाधन जैसे तेल खनिज इत्यादि प्राप्त कर सकें तथा अपने सैन्य ठिकाने स्थापित कर सकें।
(ii) आर्थिक सहायता (जिसमें गठबंधन में शामिल बहुत से छोटे-छोटे देश सैन्य-खर्च वहन करने में मददगार हो सकते थे)। ये ऐसे कारण थे जो छोटे देशों को महाशक्तियों के लिए जरूरी बना देते थे।
(iii) विचारधारा के कारण भी ये देश महत्त्वपूर्ण थे। गुटों में शामिल देशों की निष्ठा से यह संकेत मिलता था कि महाशक्तियाँ विचारों का पारस्परिक युद्ध भी जीत रही हैं। गुट में शामिल हो रहे देशों के आधार पर वे सोच सकती थीं कि उदारवादी लोकतंत्र और पूँजीवाद, समाजवाद और साम्यवाद से कहीं बेहतर है अथवा समाजवाद और साम्यवाद, उदारवादी लोकतंत्र और पूँजीवाद की अपेक्षा बेहतर है।
Q. परमाणु अप्रसार (NPT) संधि क्या है ?
उत्तर-यह संधि केवल परमाणु शक्ति-सम्पन्न देशों को एटमी हथियार रखने की अनुमति देती है और बाकी देशों को ऐसे हथियार हासिल करने से रोकती है। परमाणु अप्रसार संधि के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए उन देशों को परमाणु-शक्ति से सम्पन्न देश माना गया जिन्होनें 1 जनवरी, 1967 से पहले किसी परमाणु हथियार अथवा अन्य विस्फोटक परमाणु सामग्रियों का निर्माण और विस्फोट किया हो। इस परिभाषा के अंतर्गत पाँच देशों- अमेरीका, सोवियत संघ (बाद में रूस), ब्रिटेन, फ्रांस और चीन को परमाणु-शक्ति से सम्पन्न माना गया। इस संधि पर एक जुलाई 1968 को वाशिंगटन, लंदन और मास्को में हस्ताक्षर हुए और यह संधि 5 मार्च, 1970 से प्रभावी हुई। इस संधि को 1995 में अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया।
Q. गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर- गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका- किसी भी महाशक्ति के नियंत्रण या प्रभाव में न रहकर, अंतर्राष्ट्रीय प्रश्नों का निर्णय गुण-दोषों के आधार पर करना गुट निरपेक्षता है। गुट निरपेक्ष रहते हुए भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सक्रिय भूमिका निभायी है। गुट निरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन 1961 में बेलग्रेड में हुआ जिसमें 25 देश शामिल हुए थे। अब तक इसमें 116 देश शामिल हो चुके हैं। गुट निरपेक्ष आंदोलन में नेहरू जी का स्थान सर्वोपरि रहा था। उन्होंने निरस्त्रीकरण का समर्थन और साम्राज्यवाद का विरोध किया। गुटनिरपेक्ष देशों का सम्मेलन समय-समय पर किसी सदस्य देश में होता रहता है। 1980 में भारत 'अफ्रीका कोष का अध्यक्ष बना। जकार्ता सम्मेलन 1992 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के पुनर्गठन का मामला उठाया। 11वाँ सम्मेलन कार्टिजेना में 1995 में सम्पन्न हुआ। कार्टिजेना घोषणा में आतंकवाद को निन्दनीय बताया गया और कहा गया कि हर प्रकार के आतंकवाद का विरोध होना चाहिए।
Q. गुटनिरपेक्ष आंदोलन के किन्हीं चार लक्षणों की व्याख्या करें।
उत्तर- गुटनिरपेक्ष आंदोलन के चार लक्षण हैं-
(i) साधारणतया गुटनिरपेक्ष आंदोलन महाशक्तियों के गुटों में सम्मिलित न होने का आंदोलन है।
(ii) यह पृथकतावाद नहीं है, जैसे अमेरिका ने 1787 ई० से प्रथम विश्वयुद्ध तक पुथकतावाद की नीति अपनाई थी। इसके विपरीत भारत जैसे देशों ने शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच मध्यस्थता में सक्रिय भूमिका निभाई।
(iii) गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अर्थ तटस्थता की नीति भी नहीं है क्योंकि तटस्थता का अभिप्राय युद्ध में सम्मिलित न होने की नीति है। जबकि गुटनिरपेक्ष देश कई बार युद्ध में शामिल हुए हैं तथा युद्ध को टालने और युद्ध को समाप्त करने के प्रयास किए हैं।
(iv) गुटनिरपेक्षता या महाशक्तियों से अलग रहने की नीति का मतलब यह नहीं है कि इस आंदोलन से जुड़े देश अपने को अंतर्राष्ट्रीय मामालों से अलग-थलग रखते हैं। गुटनिरपेक्ष देशों की शक्ति उनकी आपसी एकता और महाशक्तियों द्वारा अपने अपने समकालीन विश्व राजनीति गुट में सम्मिलित करने की पुरजोर कोशिश के बावजूद ऐसे किसी गुट में सम्मिलित न होना उनका संकल्प है।
class 12 political science solution and notes
class 12 political science notes,class 12 political science notes in hindi,class 12 political science notes chapter 1 in hindi
Q. विश्वशांति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की भूमिका की चर्चा करें।
उत्तर-गुटनिरपेक्ष आंदोलन के मुख्य उद्देश्य-
(i) गुटनिरपेक्ष आंदोलन का मुख्य उद्देश्य शांति की स्थाई स्थापना के लिए प्रयत्न करना और साम्राज्यवाद के विस्तार को रोकना रहा है।
(ii) गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने जातीय भेदभाव का तीव्र विरोध किया। इसने रंगभेद की नीति का विरोध करते हुए दक्षिण अफ्रीका की सरकार के विरुद्ध कई प्रतिबंध लगाए और दो बड़ी शक्तियों को भी इसके लिए प्रोत्साहित किया।
(ii) गुटनिरपेक्ष आंदोलन के देशों का एक अन्य महत्त्वपूर्ण उद्देश्य दक्षिण से सहयोग तथा गरीब देशों को अधिकाधिक सहायता प्रदान करने का प्रयास करना है।
(iv) गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने अफ्रीका और एशिया के बहुत से देशों के स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन दिया, जिससे वे स्वतंत्रता प्राप्त करने में सफल हुए।
(v) परमाणु अस्त्रों की होड़ विश्व को तीसरे विश्वयुद्ध की ओर धकेल सकती थी। गुटनिरपेक्ष देशों ने अमेरिका तथा सोवियत संघ को परमाणु और रासायनिक हथियारों को नष्ट करने की बार-बार अपील की।
Q. एकल-धुवीय विश्व में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता का विश्लेषण करें।
उत्तर- मेरे विचारानुसार गुट-निरपेक्ष आंदोलन अभी भी प्रासंगिक है। दिसम्बर, 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो जाने के बाद से विश्व एकधुवीय बन चुका है। मिस्र ने सुझाव दिया है कि गुटबंदी समाप्त होने के कारण गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य पूरा हो गया है। अतः अब गुट निरपेक्ष आंदोलन को 6-77 के समूह में शामिल
हो जाना चाहिए। फरवरी, 1992 के पहले सप्ताह में गुट निरपेक्ष राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों का सम्मेलन निकोसिया में हुआ जिसमें बदली परिस्थितियों में इस आंदोलन की भावी भूमिका पर विचार हुआ। 1992 में इंडोनेशिया में दसवें शिखर सम्मेलन में अधिकतर सदस्यों ने गुट निरपेक्ष आंदोलन को जारी रखने पर जोर दिया और इसके उद्देश्य में
परिवर्तन करने को कहा। गुट निरपेक्ष आंदोलन की अब क्या प्रासंगिकता रह गई है. इसका वर्णन निम्नांकित है-
(i) नवोदित राष्ट्रों का संगठन होने के कारण इसकी प्रासंगिकता अभी भी है। इन राष्ट्रों का आर्थिक विकास और उनका राजनीतिक विकास भी परस्पर सहयोग पर निर्भर है।
(ii) वर्तमान महाशक्ति अमेरिका के प्रभाव से मुक्त रहने के लिए निर्गुट राष्ट्रों का आपसी सहयोग और भी अधिक आवश्यक है।
(iii) गुट निरपेक्ष आंदोलन अमेरिका, यूरोप तथा जापान जैसे पूँजीवादी देशों से उनकी रक्षा के लिए आवश्यक है।
(iv) गुट निरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से निशस्त्रीकरण की आवाज उठाई जा रही है। जो गुट निरपेक्ष देशों को सुरक्षा प्रदान करती है।
(v) अधिकतर गुट निरपेक्ष देश विकासशील या अविकसित हैं। सभी की आर्थिक समस्याएँ समान हैं। अतः आपसी सहयोग से ही आर्थिक उन्नति की जा सकती है।
Q. विश्व राजनीति में शीत युद्ध के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर- (i) शीत युद्ध के दौरान हथियारों की होड़, शक्ति प्रदर्शन, देशों की गुटबंदी तथा तनाव बना रहा। विश्व दो-धुविय बन गया, लेकिन साथ में विश्व में एक शक्ति-संतुलन बना रहा।
(ii) शीत युद्ध के दौरान कई सकंट आए और कई खूनी लड़ाइयाँ हुई। लेकिन इन संकटों और खूनी लड़ाइयों की परिणति तीसरे विश्व युद्ध के रूप में नहीं हुई।
(iii) दोनों महाशक्तियाँ कोरिया (1950 ई०-1953 ई०), बर्लिन (1958 ई०-1962 ई०), कांगो (1950 ई० के दशक की शुरुआत) और कई अन्य स्थानों पर सीधे-सीधे मुठभेड़ की स्थिति में आ चुकी थीं। कोरिया, वियतनाम और अफगानिस्तान जैसे कुछ क्षेत्रों में व्यापक जनहानि हुई, लेकिन विश्व परमाणु युद्ध से बचा रहा और वैमनस्य विश्वव्यापी नहीं हो पाया।
(iv) इन परिस्थितियों के बीच कई शांतिप्रिय देशों ने मिलकर गुट निरपेक्ष आंदोलन खड़ा किया। कई ऐसे मौके आए जब शीत युद्ध के संघर्षों और कुछ गहन संकटों को टालने में इन देशों ने मुख्य भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए नेहरू ने उत्तरी और दक्षिण कोरिया के बीच मध्यस्थता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(v) हालाँकि शीत युद्ध के दौरान दोनों ही गठबंधनों के बीच प्रतिद्वंद्विता समाप्त नहीं हुई। एक दूसरे के प्रति शंका के कारण दोनों गुटों ने भरपूर हथियार जमा किए और लगातार युद्ध की तैयारी करते रहे। हथियारों के बड़े जखीरे को युद्ध से बचने के लिए जरूरी माना गया।
(vi) इस कारण समय रहते तनाव को शिथिल करते हुए अमेरिका और सोवियत संघ ने कुछेक पारमाण्विक और अन्य हथियारों को सीमित या समाप्त करने के लिए आपस में सहयोग का फैसला किया। सन् 1960 ई० के दशक के उत्तरार्द्ध में दोनों पक्षों ने तीन अहम् समझौते पर दस्तखत किए-
(a) परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि,
(b) परमाणु अप्रसार संधि और
(c) परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि।
इसके बाद महाशक्तियों ने अस्त्र-परिसीमन के लिए वार्ताओं के कई दौर किए।
Q क्यूबा मिसाइल संकट क्या था ? विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर- क्यूबा अमेरीका के तट से लगा हुआ एक छोटा-सा द्वीपीय देश है। इसका जुड़ाव सोवियत संघ से था और सोवियत संघ उसे कूटनीतिक तथा वित्तीय सहायता देता था। 1961 की अप्रैल में सोवियत संघ के नेताओं को यह चिंता सता रही थी कि अमेरीका साम्यवादियों द्वारा शासित क्यूबा पर आक्रमण कर देगा और इस देश के राष्ट्रपति
फिदेल कास्त्रो का तख्ता-पलट हो जाएगा। सोवियत संघ के नेता नकिता खुश्चेव ने क्यूबा को रूस के सैनिक अड्डे' के रूप में बदलने का फैसला किया। 1962 में खुश्चेव समकालीन विश्व राजनीतिने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं। इन हथियारों की तैनाती से पहली बार अमेरीका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया। हथियारों की इस तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमेरीका के मुख्य भू-भाग के लगभग दोगुने ठिकानों या शहरों पर हमला बोल सकता था। क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु हथियार तैनात करने की भनक अमरीकियों को तीन हफ्ते बाद लगी। कैनेडी ने आदेश दिया कि अमरीकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाए। इस तरह अमेरीका सोवियत संघ के मामले के प्रति अपनी गंभीरता की चेतावनी देना चाहता था। ऐसी स्थिति में यह लगा कि युद्ध होकर रहेगा। इसी को क्यूबा मिसाइल संकट' के रूप में जाना गया। इस संघर्ष की आशंका ने पूरी दुनिया को बेचैन कर दिया। यह टकराव कोई आम युद्ध नहीं होता। अंततः दोनों पक्षों ने युद्ध टालने का फैसला किया और दुनिया ने चैन की साँस ली। सोवियत संघ के जहाजों ने या तो अपनी गति धीमी कर ली या वापसी का रूख कर लिया। 'क्यूबा मिसाइल संकट' शीतयुद्ध का चरम बिन्दु था। शीतयुद्ध सोवियत संघ और अमेरीका तथा इनके साथ देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता, तनाव और संघर्ष की एक श्रृंखला के रूप में जारी रहा। सौभाग्य से इन तनावों और संघर्षों ने युद्ध का रूप नहीं लिया, यानी इन दो देशों के बीच कोई पूर्णव्यापी रक्तरंजित युद्ध नहीं छिड़ा। विभिन्न इलाकों में युद्ध हुए, दोनों महाशक्तियाँ और उनके साथी देश इन युद्धों में संलग्न रहे वे क्षेत्र विशेष के अपने साथ देश के मददगार बने, लेकिन दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध से बच गई। शीतयुद्ध सिर्फ जो-आजमाइश, सैनिक गठबंधन अथवा शक्ति-संतुलन का मामला भर नहीं था बल्कि इसके साथ-साथ विचाराधारा के स्तर पर भी एक वास्तविक संघर्ष जारी था। विचारधारा की लड़ाई इस बात को लेकर थी कि पूरे विश्व में राजनीति. आर्थिक और सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे बेहतर सिद्धांत कौन-सा है। पश्चिमी गठबंधन का अगुआ अमेरीका और यह गुट उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का हामी था।
इन्हें भी देखे :-
ii).
No comments
please write for other study materials